विचार

वह सहज ही मित्र बना लेते हैं। राजीव गांधी ने ही उन्हें 1986 में हिमाचल युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था और लगभग एक दशक तक, यानी वर्ष 1995 तक वह इस पद पर बने रहे। अपनी वैयक्तिक खूबियों के चलते उन्होंने राजीव गांधी का दिल जीत लिया और फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा...

राहत इन्दौरी साहिब ने जब अपनी गज़़ल में यह शे’र कहा होगा, ‘लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है’, तब शायद उनको यह एहसास नहीं रहा होगा कि विरोधाभासों से भरे इस देश में कभी लोगों की जान बचाने के लिए कोरोना के इंजेक्शन ही उनकी जान जाने का सबब बन जाएंगे। लेकिन जिस देश में दूध में पानी मिलाने वाली कहावतें न केवल सिर चढ़ कर बोलती हों, बल्कि आम जनमानस में फल-फूल भी रही हों, वहां अगर कोरोना से पार पाने वाले इंजेक्शन पानी साबित हों तो

चुनाव की भाषा में अमर्यादित होती परिपाटी और सियासी उच्चारण में तार-तार होता हिमाचली चरित्र। मंडी की गलियों से शुरू हुआ उम्मीदवारों का भाषायी उन्माद अंत आते-आते पूरे प्रदेश में सिरफिरा हो गया। भाषा और भाषण में अंतत: राजनीतिक कंगाली का आलम यह है कि कोई विपक्ष की खिल्ली उड़ा रहा है, तो कहीं सत्ता को कोसने की शब्दावली में जहर भरा है। जो भी हो, भाषा ने हमारी चारित्रिक पहचान डुबो दी है। बावजूद इसके पहली बार हर उम्मीदवार जनता से अपने संवाद की नजदीकी के लिए, स्थानी

लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है। देश की बागडोर सौंपने के लिए कुछ राज्यों ने मतदान कर दिया है और अब कुछ ही राज्यों में मतदान शेष है। हिमाचल प्रदेश की ठंडी वादियों में भी आम चुनाव की हो रही है गर्मागर्म राजनीति, लेकिन हमें अपने ठंडे दिमाग से सोचकर करना है अपने कीमती वोट का प्रयोग। आम चुनाव में वैसे तो राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मुद्दे चलते हैं। जहां तक हिमाचल प्रदेश की बात है, यहां बहुत से मुद्दे हैं, उन पर अभी भी गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।

कांग्रेस आलाकमान का चरित्र और रवैया ‘सामंती सिंड्रोम’ से कम नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने पश्चिम बंगाल के सबसे अनुभवी, दिग्गज और जनाधारी नेता अधीर रंजन चौधरी को फटकार कर खारिज कर दिया, क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ टिप्पणी कर दी थी। खडग़े ने ममता की तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ संबंधों की कुछ व्याख्या

‘चीनी-रूसी भाई-भाई’ के नारे एक बार फिर गूंजने लगे हैं, तो क्या ‘हिंदी-रूसी भाई-भाई’ के परंपरागत और दोस्ती के नारों पर पुनर्विचार करना चाहिए? यह सवाल अहम और अनिवार्य है, क्योंकि रूस भारत का दशकों पुराना और आजमाया हुआ ‘रणनीतिक मित्र’ है और चीन हमारा घोषित दुश्मन है। यदि ‘दुश्मन’ जैसा कड़ा शब्द छोड़ दिया जाए, तो चीन हमारा कट्टर प्रतिद्वंद्वी है। घुसपैठि

चुनाव की आंखें जो देख रही हैं, उससे भिन्न हैं हमारे जहां। छोटे से हिमाचल में समाज ने बड़े ही गोपनीय अंदाज से बड़े-बड़े साम्राज्य बना लिए हैं। ये साम्राज्य कानून व्यवस्था से बेफिक्र, प्रशासनिक चौकसी से दूर और सियासी प्रणाली से गलबहियां करते मिल जाएंगे, फिर भी कसूर सिर्फ मतदाता का है जो वर्षों से लोकतांत्रिक देश में आंखें फाड़ कर खुद को देखने में असफल हो रहा है। हमें कोफ्त नहीं कि पहाड़ कट कर मैदान हो गया, हमें दुख नहीं कि हमारी अपनी नदी सूख गई। हम विकास की चिलमन

हुक्मरानों को हिमाचल प्रदेश के सैन्य बलिदान से मुखातिब होना होगा। सशस्त्र सेनाओं में वीरभूमि के दमदार सैन्य इतिहास के मद्देनजर राज्य के सैन्य भर्ती कोटे में बढ़ोतरी होनी चाहिए। युवाओं के मुस्तकबिल से जुड़े इस मुद्दे पर सूबे की लीडरशिप को राष्ट्रीय स्तर प

मोल भाव का हुनर किसी भी व्यक्ति को आम से खास बना सकता है, इसी में पारंगत होकर लोग सदियों से सब्जी वाले से मुफ्त धनिया, स्वाद चखने के नाम पर मुफ्त की मिठाई और शादी के नाम पर एक ही लुगाई से सारी जिंदगी निकाल रहे हैं। हुनर ने इनसान को तरह तरह के कामों के जरिए कहीं से कहीं पहुंचा दिया। हुनर एक तरह का प्रक्षेपण है, कई बार सुलगा कर पैदा होता है। पत्नियां अक्सर शादी के हुनर में बर्बाद हुए पति को सुलगा कर हुनरमंद बना देती हैं। यही आश्चर्य बुद्धिजीवी को होता है, जब उसकी पत्नी उसे हुनरमंद बना देती है। हर बार एक नया हुनर उसके सामने लटका दिया जाता है। उसे शादी की खातिर हुनर अपनाते अपनाते यह तो मालूम हो ही गया कि जीवन और बाजार में टिके रहने के लिए मोल भाव करते रहना चाहिए, इ