कृषि हेल्पलाइन : खरीफ फसलों की बिजाई के लिए राहत लेकर आई प्री-मानसून बौछारें

कार्यालय संवाददाता—पालमपुर

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से भारी बारिश वाले दिनों की संख्या घट रही है, जबकि ज्यादा बारिश वाले दिनों की संख्या बढ़ रही है, जिससे बार बार सूखा और बाढ़ की स्थितियां पैदा हो रही हैं। पूरे देश में कुल बारिश का 70 फीसदी पानी मानसून के दौरान बरसता है। हिमाचल प्रदेश का लगभग 75 से 80 प्रतिशत खेती का क्षेत्रफल वर्षा पर निर्भर करता है। उपयुक्त और समय पर मानसून बारिश का होना खरीफ फसलों की बिजाई, सिंचाई और पैदावार के लिए शुभ संकेत होता है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार इस वर्ष मानसून 104 से 110 फीसदी बारिश के साथ सामान्य से बेहतर रहने की उम्मीद है। यह फसलों के लिए अच्छा संकेत है। अगर समय पर अच्छी बारिश होती है, तो खाद्यान्न सहित सब्जियों का उत्पादन भी बढिय़ा होने की उम्मीद रहती है, लेकिन मानसून सीजन में सामान्य से कम बारिश होने पर कृषि पर संकट छा जाता है। प्री मानसून बौछारों से प्रदेश भर में अब किसानों ने बुवाई का काम शुरू कर दिया है। इस बार पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तरह गर्मी का सीजन लंबा खिंच गया।

इस वर्ष जून असामान्य रूप से गर्म रहा। तापमान कई जिलों में 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया, जिस कारण लू और गर्मी का अधिक प्रकोप रहा। इसका प्रतिकूल असर फसलों और बागबानी पर पड़ा। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार हालांकि मानसून में देरी हो रही है, लेकिन प्री-मानसून की बौछारों से किसान खेती कार्य में जुट गया है। प्रदेश के निचले इलाके जहां बिना बारिश से मक्की की बिजाई कर दी गई थी, परंतु सूखे की वजह से बीज अंकुरित नहीं हो पाया। प्री मानसून की बारिश से खेतों में बिजाई के लिए उपयुक्त नमी पाई गई है। किसान पुन: मक्की का बीज रोपण में जुट गए हैं। कम बारिश के कारण दलहन, तिलहन और धान की खेती भी प्रभावित हुई हैं।