कर्मचारियों के लिए सरल बने चुनावी प्रक्रिया

इसके साथ ही 55 साल की उम्र पार कर चुके कर्मचारियों को निश्चित रूप से चुनावी ड्यूटी से मुक्त रखा जाना चाहिए। जहां तक संभव हो सके कर्मचारियों को दूरदराज के निर्वाचन क्षेत्रों में भेजने के बजाय बगल वाले विधानसभा क्षेत्रों में ड्यूटी करने के लिए भेजा जाना चाहिए। कर्मचारियों के लिए रहने-खाने की व्यवस्था भी स्कूलों के बजाय निर्वाचन आयोग द्वारा ही अनिवार्य रूप से करवाई जानी चाहिए…

हिमाचल प्रदेश के चुनावी इतिहास में पिछले लोकसभा चुनावों में पहली बार चुनाव ड्यूटी में लगे 24 सरकारी कर्मचारियों को एक साथ सस्पेंड होने का दंश भोगना पड़ा था। इस बार भी लोकसभा चुनावों में अत्यधिक गर्मी की वजह से जहां कुछ चुनाव कर्मियों की मौतों की खबरें हैं तो वहीं कुछ कर्मचारियों को निलंबित भी किया गया है। भारतीय चुनाव आयोग द्वारा 18वीं लोकसभा के लिए जारी कार्यक्रम के अनुसार देश की 543 सीटों के लिए 19 अप्रैल से 1 जून, 2024 के बीच 7 चरणों में चुनाव सम्पन्न करवाने की घोषणा की गई थी। हिमाचल प्रदेश की चार लोकसभा सीटों के लिए आखिरी चरण यानी 01 जून को मतदान संपन्न हुआ। लोकसभा चुनाव में इस बार कुल 98.8 करोड़ मतदाताओं में से 64 करोड़ 20 लाख से ज्यादा मतदाताओं ने वोट डाले, जिसे चुनाव आयोग ने एक बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा कि हमने एक विश्व रिकॉर्ड बनाया है। कुल 10.5 लाख ईवीएम मशीनों का प्रयोग किया गया। मशीनों पर प्रत्याशियों के चुनाव चिन्ह और नाम के साथ साथ उनके फोटो भी लगाए गए थे ताकि मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार को आसानी से पहचान कर वोट डाल सकें। चुनाव आयोग द्वारा पहली बार सोशल मीडिया के जरिए चुनाव प्रचार को भी आचार संहिता के दायरे में लाया गया था। भारत में इतने लंबे समय तक चुनाव चलने की वजह से सभी विकास कार्य प्रभावित हुए हैं।

लगभग पौने 3 महीने तक लागू रही आचार संहिता की वजह से बहुत सारे विकास कार्य ठप होकर रह गए और राष्ट्र को अप्रत्यक्ष हानि उठानी पड़ी। दूसरे भारी गर्मी में चल रही चुनावी प्रक्रिया में चुनावी ड्यूटी पर लगे कुछ कर्मचारियों की जानें भी गई हैं। इस वजह से मांग उठी है कि जब देश में तापमान लगभग 45 डिग्री से ऊपर चल रहा हो, तब चुनाव पहले करवा लिए जाने चाहिए थे। शायद इसी वजह से मतदान प्रतिशत भी कम रहा। मतदान केंद्र ऐसे स्कूल या पंचायत भवनों में बनाए गए थे, जहां पंखे तक नहीं थे। पोलिंग पार्टियों को वहां पहले से पहुंचकर लंबी ड्यूटी करनी पड़ी। हिमाचल में सबसे आखिरी चरण में मतदान हुआ, लिहाजा सभी प्रत्याशियों को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार करने के लिए पर्याप्त समय मिला। हिमाचल प्रदेश में 2024 के लिए हुए लोकसभा चुनाव में प्रदेश के चार संसदीय क्षेत्रों में मत प्रतिशतता लगभग 71 प्रतिशत रही। इसी बीच चुनाव आयोग द्वारा हिमाचल प्रदेश के तीन निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे से रिक्त हुई तीन विधानसभा सीटों क्रमश: देहरा, नालागढ़ और हमीरपुर के लिए उपचुनावों की अधिसूचना जारी कर दी गई है, जिसके लिए 10 जुलाई को मतदान होगा और 13 जुलाई 2024 को मतगणना के बाद नतीजे घोषित किए जाएंगे।

हिमाचल प्रदेश में चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुए, लेकिन चुनावों को लेकर व्यवस्था संबंधी कुछ मुद्दों पर निर्वाचन आयोग को गौर फरमाने की आवश्यकता है। जहां तक चुनावी ड्यूटी में लगे कुछ कर्मचारियों के सस्पेंड किए जाने का सवाल है, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि मतदान से पूर्व तैनात सभी कर्मचारियों को रिहर्सल द्वारा सभी विधानसभा क्षेत्रों में तैयारी करवाई जाती है। अज्ञानतावश, जल्दीबाजी अथवा डर के चलते कहीं न कहीं चुनावी प्रक्रिया में मानवीय चूक होने से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। ऐसी भी सूचनाएं हैं कि कई मतदान केंद्रों में तैनात पीठासीन अधिकारियों ने अपनी टीम पर भरोसा ही नहीं किया। चुनाव आयोग द्वारा मतदान प्रक्रिया में हुई त्रुटियों का संज्ञान लेते हुए कुछ कर्मचारियों को सस्पेंड किया गया है। लोगों का ऐसा मानना है कि कोई भी कर्मचारी जानबूझकर गलती नहीं करता, लेकिन एकदम सस्पेंड होने का डर उसे भयाक्रांत करता है। आज के हालात में कोई भी कर्मचारी अपनी नौकरी से हाथ धोना नहीं चाहता और न ही सस्पेंड होने का कलंक अपने सिर पर ढोना चाहेगा। हिमाचल प्रदेश में चुनाव डयूटी का जिम्मा हजारों कर्मचारी उठाते आ रहे हैं और हर बार सफलतापूर्वक चुनावी प्रक्रिया को संपन्न करवाते हैं। प्राय: ऐसा भी देखने में आता है कि मतदान वाले दिन सुबह चार बजे से चुनावी ड्यूटी में लगे कर्मचारियों को मतदाताओं की लम्बी कतारों के चलते कई बार खाना खाने का समय भी नहीं मिलता है। हिमाचल प्रदेश एक पर्वतीय प्रदेश है, कई मतदान केंद्रों तक पैदल पहुंचना पड़ता है। कई जगहों पर रहने-खाने की व्यवस्था दुरुस्त नहीं होती है। चार-पांच दिनों तक मतदान प्रक्रिया को संपन्न करवाना किसी भी कर्मचारी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होता है। कई पोलिंग पार्टियों ने मतदान के बाद रात 2 और 3 बजे तक अपनी ईवीएम को जमा करवाया है।

उनकी मानसिक स्थिति को समझा जा सकता है। कई कर्मचारी रिटायरमेंट के नजदीक होते हैं, स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां होती हैं, लिहाजा चुनाव आयोग को चाहिए कि कर्मचारियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अख्तियार करे और सस्पेंड हुए कर्मचारियों का पक्ष जल्दी सुनकर उन्हें शीघ्र बहाल किया जाए। इसके साथ ही 55 साल की उम्र पार कर चुके कर्मचारियों को निश्चित रूप से चुनावी ड्यूटी से मुक्त रखा जाना चाहिए। जहां तक संभव हो सके कर्मचारियों को दूरदराज के निर्वाचन क्षेत्रों में भेजने के बजाय बगल वाले विधानसभा क्षेत्रों में ड्यूटी करने के लिए भेजा जाना चाहिए। कर्मचारियों के लिए रहने-खाने की व्यवस्था भी स्कूलों के बजाय निर्वाचन आयोग द्वारा ही करवाई जानी चाहिए। कर्मचारियों को उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए तुरंत उचित एवं सम्मानजनक पारिश्रमिक दिए जाने की भी व्यवस्था होनी चाहिए। सबसे बड़ी जरूरत कर्मचारियों के दिलो-दिमाग से चुनावी ड्यूटी के भय को समाप्त करने के उपायों को लागू करने की होनी चाहिए ताकि उनका मनोबल ऊंचा बना रहे। इस मसले का अनिवार्य रूप से समाधान होना चाहिए ताकि कर्मचारी राहत महसूस करें।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक