पांच साल में सिर्फ पिल्लर तैयार, पुल को अभी ‘लंबा’ इंतजार

भागसूनाग चरान खड्ड पर पुल न होने से परेशान हो रहे लोग, बरसात में आर-पार जाना मुश्किल
सुनील समियाल-मकलोडगंज
कांगड़ा जिला को चंबा से धौलाधार की मुश्किल पहाडिय़ों को पार कर जोडऩे वाले सदियों से चले आ रहे प्राचीन रास्तों को आज के आधुनिक युग में अधूरे पुल ने अधर में लटका दिया है। धर्मशाला के साथ लगते मकलोडग़ंज भागसूनाग के चरान खड्ड को बरसात व अन्य बाढ़ की स्थिति में पार करने के लिए लकड़ी का पुल होता था, लेकिन भयंकर बाढ़ आने से वह बह गया था। जिसके बाद साढ़े चार वर्षों से भागसूनाग चरान खड्ड में पक्का पुल का निर्माण कार्य शुरू तो हुआ, लेकिन वह पिल्लरों से आगे ही नहीं बढ़ पाया है। जबकि प्राचीन समय से ही कांगड़ा घाटी को चंबा की वादियों में पहुंचने सहित धार्मिक आस्था की प्रतीक पवित्र मणिमहेश यात्रा, नागडल सहित भेड़-बकरियों सहित पशुओं को ले जाने का मुख्य रास्ता था। जिससे लोग भागसूनाग से चरान को पार करके ही लेटा, लिंडीबेही, त्रियुंड, लाका धार, इंद्रहार पास को पार करते हुए चंबा में स्थित नागडल, क्वांरसी, होली-भरमौर, कार्तिक स्वामी केलंग बजीर मंदिर कुगति, मणिमहेश व चंबा के विभिन्न धार्मिक स्थलों व गद्दी भेड़पालक विभिन्न घाटियों में पहुंचते हुए लाहौल-स्पिति का भी रूख करते थे।

लेकिन आज के समय में पुल के अधूरे निर्माण कार्य ने हादसों को भी बढ़ा दिया है। बरसात में भागसूनाग वाटरफॉल चरान खड्ड का बहाव आत्यधिक अधिक होता है, जबकि उसमें रास्तों को पार करके पहुंचने के लिए कोई भी पुल उपलब्ध नहीं है। ऐसे में कई बार दुर्घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं। वहीं अब पर्यटक स्थल बन चुका है, जिसमें ट्रेकिंग साइटों व धार्मिक स्थलों के लिए हज़ारों लोग रवाना होते हैं। लेकिन अब एक बार फिर बरसात पहाड़ी क्षेत्र में शुरू हो गई है, जबकि पुल के न होने से खतरा फिर से बढ़ गया है, जिससे स्थानीय लोग, पर्यटन कारोबारी सहित अन्य समाजसेवी व बुद्धिजिवियों ने भी चिंता जताई है। एचडीएम

लकड़ी और लोहे का बनवाया था पुल
भागसूनाग के स्थानीय लोगों ने बताया कि करीब पचास साल पहले त्रियुंड सहित अन्य क्षेत्रों में पैदल जाने के लिए भागसूनाग के समीप चरान खड्ड पर उस समय के विधायक द्वारा लकड़ी और लोहे से एक अच्छे पुल का निर्माण करवाया गया था। उहोंने बताया कि कुछ साल पहले बरसात में यह पुल चरान खड्ड में समा गया। लकिन आज तक उस पुल का पुन: निर्माण नहीं हुआ।