Himachal Forest: हिमाचल के पास 3.21 लाख करोड़ की वन संपदा, पर कमाई जीरो

सरकार ने 16वें वित्तायोग से जंगल के बदले कर हस्तांतरण में हिस्सा मांगा

वैज्ञानिक दोहन की अनुमति मिले, तो हर साल होगी 4026 करोड़ की कमाई

राजेश मंढोत्रा — शिमला

मुश्किल आर्थिक स्थिति का सामना कर रहे हिमाचल प्रदेश के पास इस समय 3.21 लाख करोड़ रुपए की वन संपदा है। यदि इस वन संपदा के वैज्ञानिक दोहन हो पाता, तो हर साल 4026 करोड़ की कमाई होती। लेकिन भारत सरकार की नेशनल फोरेस्ट पॉलिसी-1988 और फोरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट-1990 के कारण ग्रीन फेलिंग पर प्रतिबंध है। इसलिए इन जंगलों को संभालने और बढ़ाने का खर्चा ही होता है, जबकि इनसे कमाई लगभग जीरो है। राज्य सरकार ने 16वें वित्त आयोग को बताया है कि पिछले पांच साल में 67327 क्यूबिक मीटर खैर की नीलामी से 114 करोड़ कमाए गए हैं, लेकिन बाकी की वन संपदा का इस्तेमाल नहीं हो रहा। यदि इसके इकोलॉजिकल वायबल और वैज्ञानिक सिल्वीकल्चरल प्रैक्टिसिज के अनुसार दोहन की अनुमति मिल जाए, तो हिमाचल को साल भर में चार हजार करोड़ से ज्यादा की आय होगी। वन संपदा के दोहन के रास्ते में फोरेस्ट्री के राष्ट्रीय कानून और अलग-अलग न्यायालयों के आदेश आड़े आ जाते हैं। हिमाचल सरकार ने काफी समय से वन विभाग के तहत चलने वाले वर्किंग प्लान कार्यक्रम को भी स्थगित किया हुआ है। वर्किंग प्लान के तहत वनों से तय नियमों के अनुसार पेड़ काटे जाते हैं और कटान से प्राप्त लकडिय़ों को अलग-अलग तरह से प्रयोग कर आय अर्जित की जाती है। फिर उतनी ही मात्रा में नए पौधे रोपे जाते हैं।

पूर्व में 15वें वित्तायोग ने राज्य में वन आवरण के बदले टैक्स आबंटन में हिमाचल के हिस्से को साढ़े सात फीसदी से बढ़ाकर दस फीसदी कर दिया था। यह बढ़ोतरी फोरेस्ट कवर के बदले मुआवजे के रूप में थी। अब हिमाचल के दौरे पर आए 16वें वित्त आयोग के सामने राज्य सरकार ने नए सिरे से पक्ष रखा है। कहा गया है कि फोरेस्ट कवर के बदले वित्त आयोग हिमाचल को होरीजेंटल टैक्स डेवोल्युशन में 12.5 फीसदी प्राथमिकता अंक अलग से दे। इससे केंद्रीय करों में राज्य का हिस्सा बढ़ जाएगा और फोरेस्ट कवर को बचाने में मदद मिलेगी। एफसीए से विकास कार्यों में अड़चन : राज्य सरकार ने वित्त आयोग को बताया कि हिमाचल प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 68.16 प्रतिशत क्षेत्र वन वर्गीकृत क्षेत्र है। यह क्षेत्र 37986 वर्ग किलोमीटर बनता है। यहां फोरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट यानी एफसीए के प्रावधान लागू होते हैं। इन क्षेत्रों में किसी भी विकास कार्य के लिए केंद्र से अनुमति लेनी होती है। यह लंबी प्रक्रिया है। इस कारण विकास कार्य प्रभावित होते हैं। अब देखना है कि वन संरक्षण के एवज में हिमाचल को वित्त आयोग की सिफारिश पर कोई आर्थिक प्रोत्साहन मिलता है या नहीं। (एचडीएम)