विचार

हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों की चुनावी लोकलुभावनी बातों पर एक हिंदी फिल्म के गाने की यह कुछ पंक्तियां बिल्कुल सूट करती हैं, ‘कसमें-वादे प्यार वफा, सब बातें हैं, बातों का क्या, देते हैं भगवान को धोखा (धर्म की राजनीति कर) इनसान को क्या छोड़ेंगे।’ चुनाव के समय देश की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां घोषणापत्रों में बहुत बड़े-बड़े दावे देशहित और जनहित के लिए

कभी हिमाचल ग्रीष्म ऋतु के काबिल और मुकाबिल था, लेकिन अब वो फिजाएं शर्मिंदा हैं। वर्तमान दौर की गर्मी ने हिमाचल के कई हिल स्टेशन तक को पसीना-पसीना कर दिया है, तो यह स्थिति हमारी योजनाओं-परियोजनाओं की चुगली कर रही है। कंक्रीट के घनत्व में होता विकास और जीवन शैली की नव अदाओं में फंसा उपभोक्तावाद, हमारे जुर्म की स्वीकारोक्ति है। हिमाचल को अगर मौ

आज राजनीति में रसूख से कुछ भी हो सकता है। कद्दावर नेताओं ने अपनी जिंदगी में रसूख का इस्तेमाल कर महिलाओं के साथ ज्यादतियां भी की हैं। आज सेक्स शोषण के डर से महिलाएं राजनीति में आने से गुरेज करती हैं। क्या यह सच नहीं है कि बॉलीवुड के कास्टिंग काउच की तरह महिलाओं के लिए भी राजनीति में ऊंचा मुकाम हासिल करने का रास्ता पॉलिटिकल बेडरूम से होकर नि

सिर्फ युवाओं तक सीमित न रहते हुए इसके जरिए स्थानीय राजनीति में प्रवासियों के मुद्दों पर भी ध्यान दिया जा सकता है। संयुक्त कार्यक्रम भी चले...

स्वास्थ्य लाभ के बहाने मार्निंग टॉक करता आज भी निकला था कि रास्ते में घडिय़ाल मिल गया। जनाब भी मार्निंग वॉक करने के बहाने मार्निंग टॉक करने निकले थे। यही तो वक्त होता है जब चंद लोग सडक़ में चलते हुए मिल जाते हैं, उनसे दुआ सलाम हो जाती है। वर्ना शेष सारा दिन तो खुद ही खुद की सलामती की दुआएं करते रहो। घडिय़ाल मेरे हालचाल पूछता मेरे साथ साथ चलने लगा तो मैंने पता नहीं क्यों उसकी आंखों में झांका। वैसे मैं बहुधा औरों की जेबों में झांका करता हूं। उसकी आंखों में झांका

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) द्वारा हाल ही में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार 1950 से लेकर 2015 तक कुल जनसंख्या में बहुसंख्यक हिंदू आबादी की हिस्सेदारी में 7.82 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी में 43.15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कई अन्य देशों में भी, जहां बहुसंख्यक आबादी

वह सहज ही मित्र बना लेते हैं। राजीव गांधी ने ही उन्हें 1986 में हिमाचल युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था और लगभग एक दशक तक, यानी वर्ष 1995 तक वह इस पद पर बने रहे। अपनी वैयक्तिक खूबियों के चलते उन्होंने राजीव गांधी का दिल जीत लिया और फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा...

राहत इन्दौरी साहिब ने जब अपनी गज़़ल में यह शे’र कहा होगा, ‘लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है’, तब शायद उनको यह एहसास नहीं रहा होगा कि विरोधाभासों से भरे इस देश में कभी लोगों की जान बचाने के लिए कोरोना के इंजेक्शन ही उनकी जान जाने का सबब बन जाएंगे। लेकिन जिस देश में दूध में पानी मिलाने वाली कहावतें न केवल सिर चढ़ कर बोलती हों, बल्कि आम जनमानस में फल-फूल भी रही हों, वहां अगर कोरोना से पार पाने वाले इंजेक्शन पानी साबित हों तो

चुनाव की भाषा में अमर्यादित होती परिपाटी और सियासी उच्चारण में तार-तार होता हिमाचली चरित्र। मंडी की गलियों से शुरू हुआ उम्मीदवारों का भाषायी उन्माद अंत आते-आते पूरे प्रदेश में सिरफिरा हो गया। भाषा और भाषण में अंतत: राजनीतिक कंगाली का आलम यह है कि कोई विपक्ष की खिल्ली उड़ा रहा है, तो कहीं सत्ता को कोसने की शब्दावली में जहर भरा है। जो भी हो, भाषा ने हमारी चारित्रिक पहचान डुबो दी है। बावजूद इसके पहली बार हर उम्मीदवार जनता से अपने संवाद की नजदीकी के लिए, स्थानी