संपादकीय

कभी हिमाचल ग्रीष्म ऋतु के काबिल और मुकाबिल था, लेकिन अब वो फिजाएं शर्मिंदा हैं। वर्तमान दौर की गर्मी ने हिमाचल के कई हिल स्टेशन तक को पसीना-पसीना कर दिया है, तो यह स्थिति हमारी योजनाओं-परियोजनाओं की चुगली कर रही है। कंक्रीट के घनत्व में होता विकास और जीवन शैली की नव अदाओं में फंसा उपभोक्तावाद, हमारे जुर्म की स्वीकारोक्ति है। हिमाचल को अगर मौ

चुनाव की भाषा में अमर्यादित होती परिपाटी और सियासी उच्चारण में तार-तार होता हिमाचली चरित्र। मंडी की गलियों से शुरू हुआ उम्मीदवारों का भाषायी उन्माद अंत आते-आते पूरे प्रदेश में सिरफिरा हो गया। भाषा और भाषण में अंतत: राजनीतिक कंगाली का आलम यह है कि कोई विपक्ष की खिल्ली उड़ा रहा है, तो कहीं सत्ता को कोसने की शब्दावली में जहर भरा है। जो भी हो, भाषा ने हमारी चारित्रिक पहचान डुबो दी है। बावजूद इसके पहली बार हर उम्मीदवार जनता से अपने संवाद की नजदीकी के लिए, स्थानी

कांग्रेस आलाकमान का चरित्र और रवैया ‘सामंती सिंड्रोम’ से कम नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने पश्चिम बंगाल के सबसे अनुभवी, दिग्गज और जनाधारी नेता अधीर रंजन चौधरी को फटकार कर खारिज कर दिया, क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ टिप्पणी कर दी थी। खडग़े ने ममता की तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ संबंधों की कुछ व्याख्या

‘चीनी-रूसी भाई-भाई’ के नारे एक बार फिर गूंजने लगे हैं, तो क्या ‘हिंदी-रूसी भाई-भाई’ के परंपरागत और दोस्ती के नारों पर पुनर्विचार करना चाहिए? यह सवाल अहम और अनिवार्य है, क्योंकि रूस भारत का दशकों पुराना और आजमाया हुआ ‘रणनीतिक मित्र’ है और चीन हमारा घोषित दुश्मन है। यदि ‘दुश्मन’ जैसा कड़ा शब्द छोड़ दिया जाए, तो चीन हमारा कट्टर प्रतिद्वंद्वी है। घुसपैठि

चुनाव की आंखें जो देख रही हैं, उससे भिन्न हैं हमारे जहां। छोटे से हिमाचल में समाज ने बड़े ही गोपनीय अंदाज से बड़े-बड़े साम्राज्य बना लिए हैं। ये साम्राज्य कानून व्यवस्था से बेफिक्र, प्रशासनिक चौकसी से दूर और सियासी प्रणाली से गलबहियां करते मिल जाएंगे, फिर भी कसूर सिर्फ मतदाता का है जो वर्षों से लोकतांत्रिक देश में आंखें फाड़ कर खुद को देखने में असफल हो रहा है। हमें कोफ्त नहीं कि पहाड़ कट कर मैदान हो गया, हमें दुख नहीं कि हमारी अपनी नदी सूख गई। हम विकास की चिलमन

यह मुख्यमंत्री आवास है या मारपीट, गुंडई का कोई अड्डा..! कुछ अंतराल पहले, मुख्यमंत्री आवास में ही, तत्कालीन मुख्य सचिव के साथ हाथापाई की गई थी। खबरें तो मारपीट की भी आई थीं। मामला अदालत तक पहुंचा। अंतत: क्या हुआ, कोई जानकारी नहीं। समय गुजरा, तो उस घटना पर धूल की परतें जम गईं। आखिर आम आदमी पार्टी (आप) के भीतर और मुख्यमंत्री केजरीवाल के जीवन में क्या घट रहा है कि हालात सुलगते महसूस होते हैं। कोई विधायक अपनी पत्नी पर ही कुत्ता छोड़ देता है! कोई

यूं तो राजनीति में छल, कपट और फरेब की सहज उपस्थिति सदा स्वीकार्य है, फिर भी पार्टियां एक दूसरे के आखेट में दोषारोपण करती हैं। पहली बार हिमाचल की परिस्थिति में ‘असली छलिया’ को लेकर बहस और विवाद है। यह भी अजूबा अंकगणित है क्योंकि कल के अपने, आज दूसरे के आगोश में हैं। बहुमत के बावजूद और कुल 43 विधायकों के आत्मबल के मैदान पर कांग्रेस से राज्यसभा सीट छीन कर भाजपा छलिया बनी या सत्ता का गुरूर छलनी हो गया। यहां बहस के अनेक बिंदु हर्ष महाजन को छलिया मान

हिमाचल ने चुनाव के बहाने अपने मुद्दे चुनने शुरू किए हैं, तो यह मानना पड़ेगा कि धरती के लिए जनता के सरोकार गहरा असर रखते हैं। केंद्रीय विषयों से हटकर यहां टक्कर उन कसौटियों की है, जहां सरकारों को अपने प्रदर्शन के घाव भरने हैं। यानी चुनाव के एक पहलू में मोदी तो दूसरे में सुक्खू सरकार है, फिर भी बयानों के तीर चल रहे हैं तूफानों के बीच। यह दीगर है कि मीडिया कुरेद रहा है विकास के जख्मों में फंसे उन मुद्दों को जहां जनप्रतिनिधि संतुष्ट नहीं कर पाए। अंतत: सरकारों की प्राथमिकता में हलके छोटे-बड़े साबित हो रहे हैं। चुंबक दौड़ रहे हैं ताकि राजनीतिक धु्रवों पर भीड़ एकत्रित हो, लेकिन जनता की सुनवाई में चुनाव की

कांग्रेस नेता राहुल गांधी लिख कर दे रहे हैं कि 4 जून के बाद प्रधानमंत्री मोदी इस पद पर नहीं रहेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े का दावा है कि भाजपा 200 सीटें भी जीत नहीं पाएगी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इस हद तक बयान दे रहे हैं कि भाजपा 140 सीटों को भी तरस जाएगी। तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष एवं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आकलन है कि भाजपा 195 सीटों तक सिमट जाएगी। आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पहले ही अपना गणित बता चुके हैं कि