दुनिया की सांसें थमा देने वाले वायरस को मिनटों में ढूंढ निकालेगा अनोखा डिटेक्टर, ऐसे करता है काम

By: Jul 29th, 2023 12:19 pm

मेरठ। दुनिया भर में मानव जीवन के लिए आतंक का पर्याय बन चुके कोरोना वायरस के खतरे से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने अनूठा उपकरण तैयार कर लिया है, जो न सिर्फ खतरनाक वायरस की पहचान करेगा, बल्कि चेतावनी देकर लोगों को इसके कहर से बचा भी लेगा। शोभित विश्वविद्यालय, मेरठ के कुलपति एवं जाने माने वरिष्ठ सूक्ष्म जीव विज्ञानी प्रोफेसर अमर प्रकाश गर्ग ने अमरीका के सेंट लुइस में वाशिंगटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में बनाए गए कोरोना डिटेक्टर की जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में हवा से फैलने वाले कोरोना वायरस की प्रभावी रोकथाम में यह डिटेक्टर मील का पत्थर साबित होगा। जर्मनी, इंग्लैंड, जापान, स्विट्जरलैंड, चेकोस्लोवाकिया के अलावा कई अन्य यूरोपीय देशों के विश्वविद्यालयों में शोध कार्य कर चुके डा. गर्ग ने बताया कि वाशिंगटन विश्वविद्यालय में कार्यरत भारतीय मूल के राजन चक्रवर्ती के निर्देशन में उनके सहयोगियों द्वारा करीब तीन वर्ष तक लगातार काम करने के बाद सार्स कोव 2 डिटेक्टर नामक यह उपकरण तैयार किया गया है। यह पीसीआर नाक स्वैब परीक्षण जितना ही संवेदनशील है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा तेजी से मिनटों में कोरोना वायरस का पता लगा लेता है।

कैसे करता है काम
डा. गर्ग ने बताया कि एक टोस्टर से कुछ बड़े आकार का यह डिटेक्टर हर मिनट एक हजार लीटर हवा खींचता है। वायरस को फंसाने के लिए उपकरण के अंदर तेज गति से तरल घुमाकर एक कृत्रिम चक्रवात बनाया जाता है और कोरोना वायरस इस चक्रवात की दीवार में फंस जाते हैं। चक्रवात में फंसे कोरोना वायरस एक बायो सेंसर में नैनो बॉडी से जुड़े इलेक्ट्रोड के संपर्क में आते ही ऑक्सीकृत होकर टूट जाते हैं। इस ऑक्सीकरण से होने वाले विद्युत स्पाइक को इलेक्ट्रोड से जुड़ा एक अन्य यंत्र पता लगा लेता है और हवा में कोरोना वायरस के होने का संकेत देता है।

कहां प्रभावी होगा डिटेक्टर
डा. गर्ग ने कहा कि यह चलने में एक मोबाइल फोन के बजर जैसा शोर करता है, इसलिये स्कूल की कक्षाओं अथवा कार्यालयों में लगातार इसका प्रयोग व्यावहारिक नहीं माना जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे स्थानों पर अगर 10 मिनट के अंतराल पर उसे चलाया जाए, तो यह निश्चित रूप से कारगर साबित हो सकता है।

दूसरे वायरस का भी चलेगा पता
डा. गर्ग का कहना है कि करीब 1600 डॉलर यानी एक लाख 31 हजार रुपए मूल्य के कोरोना डिटेक्टर को फिलहाल अस्पतालों, हवाई अड्डों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर वायरस सर्वेक्षण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वायरस पाए जाने पर वायु संचार व्यवस्था, वातानुकूलन या तापीय संचार को बढ़ाकर वहां मौजूद लोगों को इसके संक्रमण से बचाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इसी उपकरण में कुछ बदलाव करके अन्य श्वसन वायरस, जैसे इन्फ्लूएंजा या श्वसन सिंकाइटियल वायरस का भी पता लगाने पर काम किया जा रहा है।


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