संपादकीय

हम वाहन चला नहीं रहे, बल्कि रफ्तार को हमलावर बना रहे हैं। इसी रविवार के दृष्टांत में देखें तो वाहनों की गति व भौगोलिक परिस्थिति ने लील दिए छह लोग। ठियोग की खाई में गिरे वाहन ने दो यात्रियों की ईहलीला खत्म की दी, हाटकोटी का मलबा वाहन को लपेट कर दो लोगों के लिए घातक बना। ऊना-चंडीगढ़ मार्ग पर रफ्तार ने यमदूत बन कर दो युवकों को काल का ग्रास बना दिया, जबकि बिलासपुर में ट्रक की टक्कर ने एचआरटीसी की बस को पुल के नीचे लुढक़ा दिया। गनीमत यह कि इस दुर्घटना में चोटिल होने

हिमाचल में कांग्रेस बदल रही है और यह कोशिश आलाकमान का सजदा कर रही है। चुनावी परिदृश्य में कांग्रेस खुद से संघर्ष करती हुई यह बताना चाहती है कि उसे बाह्य स्थिति से कहीं अधिक आंतरिक सत्ता की जरूरत है। जरूरत आलाकमान के फरमान को मोहरों पर खेल रही है और जहां मकसद जीत-हार से कहीं आगे नए स्थापत्य में खुद के गुमशुदा हालात में खोजने कहीं अधिक है। इसलिए जिन्हें आश्चर्य है कि अचानक पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा अचानक कहां से कांगड़ा के उजड़े चमन में नई बहारों के लिए उतार दिए गए, वे गलत सोच रहे हैं। दरअसल यह नए लफ्जों, नए वादों और नई शक्ल-सूरत में प्रदेश की पुरानी कांग्रेस को संबोधित करने का प्रयास है। जिस पार्टी को छह विधायकों के रुखसत होने पर भी आत्मविश्लेषण की जरूरत नहीं, वह अब चमत्कार पर विश्वास कर सकती है। इसलिए

कोरोना वैश्विक महामारी से जुड़ी एक खबर हम सभी को चिंतित, व्यथित कर सकती है, लेकिन चिकित्सकों ने इसे घबराहट का मुद्दा न मानने की सलाह दी है। दुनिया में कोरोना महामारी के दौरान ब्रिटेन की कंपनी एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने एक टीके का आविष्कार किया था। उस टीके को भारत में ‘कोविशील्ड’ के नाम से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने बेचा और वितरित किया। चूंकि इतने लंबे अंतराल के बाद ब्रिटिश मीडिया के जरिए यह खुलासा हुआ है कि एस्ट्राजेनेका के टीके से खून में थक्के जम सकते हैं और व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ सकता है। कंपनी ने अदालत में यह स्वीकार भी किया है, लेकिन

प्रथमद्रष्ट्या जेहन में सवाल उठता है कि वह इनसान है या भेडिय़ा अथवा कोई हवसी जानवर है? हालांकि अभी आरोप हैं। यही कानून की अधूरी भाषा है, लेकिन क्या सभी 2976 वीडियो फर्जी, संपादित हो सकते हैं? ये वीडियो एक पेन ड्राइव में उपलब्ध हैं। जिन महिलाओं का यौन-शोषण किया गया है या मानसिकता अश्लील थी, वे सभी घर की सेविकाएं थीं। यानी घर के भीतर ही दुराचार, जघन्य अपराध किया जाता रहा। ये हरकतें अक्षम्य हैं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा के चेहरे और चिर संचित प्रतिष्ठा पर भी कालिख पोत दी गई है, क्योंकि उनका बड़ा बेटा एच.डी. रेवन्ना और पौत्र प्रज्ज्वल रेवन्ना दोनों पर ही पाशविकता का

हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड की जमा दो परीक्षा के परिणामों को समझें तो प्रदेश की आगामी पीढ़ी के मंतव्य, महत्त्वाकांक्षा, जीवन और करियर के प्रति प्रतिबद्धता तथा राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में पहाड़ी राज्य की उम्मीदें उजागर होती हैं। यहां नारी जगत के शिखर ऊंचे और गांव स्तर तक शिक्षा का प्रसार अपनी गुणवत्ता दिखा रहा

अब विकास, भारत सरकार की प्रमुख उपलब्धियां, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत और उसके प्रधानमंत्री की विराट, वैश्विक हैसियत और तीसरे स्थान की आर्थिक महाशक्ति बनने सरीखे मुद्दे तो नेपथ्य में चले गए हैं अथवा प्रसंगवश बन गए हैं, लेकिन आरक्षण एक राष्ट्रीय, केंद्रीय मुद्दा बन गया है। चूंकि आरक्षण सीधा संविधान और दलित, पिछड़ों, आदिवासियों, गरीबों से जुड़ा मुद्दा है, लिहाजा ग्रामीण स्तर पर भी लोग चिंता जताने लगे हैं कि क्या देश का संविधान बदल दिया जाएगा? तो फिर आरक्षण भी समाप्त

यहां बिका कौन बगावत किसकी, लुट रहा चुनाव ये शरारत किसकी। हिमाचल में दोनों प्रमुख पार्टियों के ताजा आचरण के बीच प्रदेश का चरित्र गौशाला हो गया या आवारा पशुओं की तरह लावारिस दिखाई दे रहा है। गाय की गिनती उसके दूध की मिकदार से है और जैसे ही वह दुधारू नहीं रहती, खुले में आवारा छोड़ दी जाती। कमोबेश समाज के इसी सिद्धांत पर राजनीति ने भी खुद की दिशा तय कर ली है यानी पार्टियां अब नेताओं के साथ दुधारू गाय जैसा व्यवहार कर रही हंै, फर्क सिर्फ इतना है कि नेता खुद को गाय नहीं मानता और न ही यह अधिकार पार्टियों को देता है कि उसकी नस्ल पर प्रतिकूल टिप्पणी हो, हालांकि जब से कांग्रेस से अलहदा होकर छह

यदि लोकतंत्र को वाकई जिंदा और प्रासंगिक रखना है, तो भरपूर मतदान कीजिए। चुनाव ही लोकतंत्र की जीवन-रेखा हैं। मताधिकार हमारा संवैधानिक, मौलिक अधिकार है, क्योंकि हम एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र हैं। मतदान छुट्टी या सैर-सपाटे का दिन नहीं है, क्योंकि हम पर देश की संसद और सरकार चुनने का गुरुत्तर दायित्व है। इस दायित्व की लगातार अनदेखी की जा रही है। आम चुनाव, 2024 के दूसरे चरण में भी मतदान अपेक्षाकृत घटा है। अर्थात चुनाव के प्रति हम उदासीन या लापरवाह दिखाई दे रहे हैं। पहले दोनों चरणों में 190 लोकसभा सीटों पर मतदान हो चुका है। यानी करीब 35 फीसदी चुनाव सम्पन्न हो चुका है,

प्रदेश में पर्यटन सीजन की आफत में नागरिक चिंताएं स्वाभाविक हैं। यह इसलिए भी कि अप्रैल से जून महीने तक यह प्रदेश अपने प्रबंधों में गोता खाता है, जबकि साधारण जनता के लिए ट्रैफिक जाम, वाहनों का प्रदूषण और जलापूर्ति के संकट बढ़ जाते हैं। पर्यटकों का हल्ला गुल्ला जब डलहौजी, मकलोडगंज, कसौली, शिमला व