विचार

हिमाचल में पर्यटन का ताज ओढ़े एचपीटीडीसी तथा एचआरटीसी के घाटों को समझें, तो यह राज्य किस क्षेत्र में आत्मनिर्भर होगा। आश्चर्य यह कि 55 होटलों का संचालन कर रहा हिमाचल पर्यटन निगम 31 इकाइयों की वित्तीय लाज नहीं बचा पा रहा। ताज्जुब यह कि चिंतपूर्णी, ज्वालाजी, चंबा, बिलासपुर, कुल्लू-मनाली, शिमला, धर्मशाला-मकलोडगंज व औद्योगिक क्षेत्र परवाणू तक के होटल घाटा पैदा कर रहे हैं। बावजूद इसके हमारे पास एशियन विकास बैंक से इतना ऋण तो मिल ही जाएगा कि आने वाले वर्षों में कु

प्रतिस्पर्धा के दौर में मातृभाषा को लेकर युवाओं में हीनभावना भी पनप रही है। भाषाओं को बचाने के लिए समय की मांग है कि क्षेत्र विशेष में स्थानीय भाषा के जानकारों को ही निगमों, निकायों, पंचायतों, बैंकों और अन्य सरकारी दफ्तरों में रोजगार दिए जाएं। इससे अंग्रेजी के फैलते वर्चस्व को चुनौती मिलेगी और ये लोग अपनी भाषाओं व बोलियों का संरक्षण तो करेंगे ही, उन्हें रोजगा

दुनिया के सबसे प्राचीन लोकतंत्र अमरीका और सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में आजकल जेहाद की गूंज है। संदर्भ और कारण अलग-अलग हैं। अमरीका के संदर्भ में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप का कहना है कि अमरीका में जेहाद नहीं चाहिए। अमरीका में यूनिवर्सिटीज का इस्लामीकरण नहीं होना चाहिए। कुछ यूनिवर्सिटी ऐसी हैं, जिनके परिसरों में युवा शक्ति गाजा के फलस्तीनियों के पक्ष में आंदोलित हैं। वे हमास जैसे आतंकी संगठन के समर्थक या प्रतिनिधि हो सकते हैं। आश्चर्य है कि गाजा के मुसलमानों के

सारी दुनिया में मई महीने के पहले रविवार को विश्व हास्य दिवस मनाया जाता है। हास्य योग के संस्धापक डॉ. मदन कटारिया ने दुनिया, देश और समाज में हास्य की भावना को बढ़ाने के उद्देश्य से ही शायद 11 जनवरी, 1998 को मुंबई में विश्व हास्य दिवस को मनाने की शुरुआत की थी

इसका ताजा उदाहरण रणवीर सिंह एवं आमिर खान के साथ हुई घटना से पता लगता है। इन दुविधाओं का समाधान जनता की तार्किक सावधानी ही है, क्योंकि कोई सूचना जब अत्यधिक वेग, हिंसा व उत्तेजना पैदा करे तो शंकित होना लाजिमी है। कुछ देर ठहरिए और मन को शांत कर सोचिए। क्योंकि जनता के जुड़ाव के लिए असंख्य सूचना का ऐसा समुद्र खड़ा कर दिया गया है जिसमें तैरना स्वयं सीखना पड़ेगा। क्योंकि जनता इस समय एंग ली द्वारा निर्देशित फिल्म लाइफ ऑफ पाई के मुख्य किरदार पाई की भांति खड़ी है जहां उसे सूचना के बवंडर से स्वयं बचना होगा... आज के समय में

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली-नोएडा के 222 स्कूलों को बम से उड़ा देने की धमकी ने एकबारगी तो सभी को कंपा दिया। हडक़ंप मच गया। लाखों लोग सन्नाटे में आ गए। अभिभावक घर से भागे, दफ्तर का काम छोड़ा और स्कूलों की तरफ बदहवास दौड़े, ताकि अपने बच्चों को सकुशल घर वापस ला सकें। सडक़ों पर सायरन बज रहे थे। फायर ब्रिगेड की गाडिय़ां भी भाग रही थीं। दिल्ली पुलिस के बम निरोधक दस्तों, श्वान दस्तों और अन्य जांच इकाइयों ने अपने-अपने मोर्चे संभाल लिए थे। दिन की शुरुआत किसी

वैसे यह भी हैरानी की बात है कि अमरीका दुनिया में ज्यादातर उन्हीं देशों का समर्थन करता है जो निरंकुश सत्ता के पालक हैं। अमरीका की विचार स्वतंत्रता और मानव अधिकारों की नीतियां केवल उसकी विदेश नीति के हथियार हैं जिनके अर्थ उसके अपने हितों के अनुसार बदलते रहते हैं...

इन खेल छात्रावासों में दाखिल होने के अवसर न के बराबर होते हैं। इसलिए स्कूल के बाद महाविद्यालय स्तर पर खेल विंग मिलना जरूरी हो जाता है...

मुझे यह तो पला चल गया था कि यह अफसर रिश्वत धड़ल्ले से खाता है-परन्तु साथ ही यह भी पला चला था कि वह रिश्वत कार में खाता है। दफ्तर अथवा घर में वह रिश्वत को हाथ भी नहीं लगाता। मेरे सामने कठिनाई यह थी कि अफसर को कार में कैसे बिठाऊं? पर भगवान बड़ा दयालु है। यह समस्या अपने आप हल हो गई। कार खुद अफसर के पास थी। उसके एक मातहत कर्मचारी ने साहब के लंच पर जाने के बहाने मुझे उसकी कार में पीछे बैठा दिया। कार चल दी, काफी देर तक चलने के बाद सिगार का धुआं छोड़ते हुए अफसर बोला-‘चुपचाप माल सीटों के नीचे घुसेड़ दो।’ अंधे को क्या चाहिए दो नैन, वह मिल गए। मैंने ब्रीफकेस खोलकर सौ के नोटों की दस गड्डियां ठिकाने लगा दी। कार किसी भी जगह लंच लेने नहीं रुकी। वापस हो गई। मुझे एक