बाजार में कचनार…दवा के साथ सब्जी भी

By: Apr 1st, 2024 12:16 am

डायरिया-थाइराइड और आंतरिक चोटों के उपचार में सहायक, पाचन क्रिया में भी लाभदायक

स्टाफ रिपोर्टर-सुंदरनगर
आधुनिकरण व भागदौड़ भरे व्यस्ततम जीवन में किसी भी व्यक्ति के पास कुदरती तौर पर सदियों से उपलब्ध होने वाली विभिन्न प्रकार की औषधियों व पदार्थों को हासिल करते हुए प्रयोग करने का समय नहीं है। लेकिन कुदरत द्वारा सालभर विशेष मौसमों में इनसान के प्रयोग हेतु समय समय पर कई प्रकार के पदार्थों को घर आंगन पर प्रयोग हेतु उपलब्ध करवा रहा है । इन दिनों कुछ ऐसी ही औषधीय गुणों से भरपूर कचनार (कराले) की कलियां पेड़ पर कुदरती रूप से निशुल्क उपलब्ध है। पौराणिक समय में वैद्य व हाकिम कचनार पेड़ की छाल, पत्तो और फूलों से विभिन्न मरीजों का उपचार करते थे। इन दिनों हर जगह कचनार (कराले) के पेड़ों पर फूल खिलने से वादियां गुलजार हो उठी हैं। कराले के पेड़ पर सफेद,गुलाबी और बैंगनी रंग में फूल खिलते हंै।

बुजुर्ग लोग जो इस गुणों से भरपूर औषधिय कराले के बारे में जानते है वे इन दिनों कराले के पेड़ से जमकर कलियों को तोडक़र विशेष रूप से एक ओर लाजवाब स्वादयुक्त सब्जी का आनंद उठा रहे हंै। वही पर दूसरी ओर कराले की कलियों के अंदर मौजूद कई प्रकार के औषधीय गुणो को सेवन करते हुए स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं । इसकी कलियों से विशेष रूप से रायता बनाया जाता है जो पेट विकारों को दूर करते हुए पाचन क्रिया को दुरुस्त करता है। आयुर्वेद की माने तो कचनार(कराले) में कुदरती रूप से औषधिय गुणों का भंडार है। कचनार की कलियों के साथ साथ पेड़ की छाल, पत्तों और फूलों में भी एंटी बैक्टीरियल संक्रमण, कुष्ठ, आंतो की कीड़ो, पीड़ा को कम करना, बुखार, थायराइड में उपचार, घाव का उपचार, अल्सर और सूजन आदि के उपचार में रामबाण साबित होती है। इन दिनों बाजार में कचनार(कराले )की कलियों 100 से लेकर 200 रुपए के दाम पर बहुत सीमित रूप से उपलब्ध होती है।

ऐसे बनती है सब्जी
कचनार की सब्जी बनाने हेतु सबसे पहले बड़े पेड़ पर चढ़ते हुए कचनार की कलियों को उतरना पड़ता है जो बड़ा ही खतरे व मेहनत का कार्य है। जिसके बाद उतारी गई कलियों को छांट करते हुए टहनियां व अन्य पत्तों को अलग किया जाता है। अलग करने के बाद कलियों को अच्छी तरह से पानी से धोते हुए साफ किया जाता है। जिसके बाद इसे पानी में तब तक उबाला जाता है जबतक कालिया पककर नरम नहीं हो जाती है। कलियां पकने के बाद इन्हें हाथ से निचोडक़र अतिरिक्त पानी निकालते हुए अलग किया जाता है।


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