बारिश और हिमालय : स्क्रब टाइफस का खतरा

By: Jul 1st, 2024 12:05 am

स्क्रब टाइफस की रोकथाम के लिए हम सबको मिलकर आगे आना है और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना है। खासकर घर व आसपास के वातावरण को साफ रखें। जब शारीरिक परहेज बनाना मुश्किल हो, तो निवारक उपायों का पालन करें…

हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध राज्य है जो भारत के उत्तरी भाग में स्थित है। यहां की भौगोलिक स्थिति उच्च पहाड़ी क्षेत्र के लिए आदर्श है, जिसके कारण यहां का ठंडा मौसम, प्राकृतिक सौंदर्य और शांति अपनी खासियत है। प्रदेश की पारंपरिक संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य और खूबसूरत पहाडिय़ों के कारण यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। इस प्रदेश में बारिश के मौसम के दौरान जैव विविधता, जलवायु और भूमि प्रबंधन के प्रकार के परिवर्तन की वजह से कई स्वास्थ्य समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं, जिनमें एक बड़ी समस्या शामिल है ‘स्क्रब टाइफस’। हिमाचल प्रदेश में स्क्रब टाइफस एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या है जिससे बड़े पैमाने पर लोग प्रभावित हो रहे हैं, खासकर महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे। स्क्रब टाइफस एक जीवाणु जनित संक्रामक रोग है जो माइट्स जैसे छोटे कीटों के काटने के कारण होता है और दुनिया भर में हर साल लाखों लोगों को संक्रमित करता है। स्क्रब टाइफस बरसात के मौसम में प्रमुखता से फैलता है, लेकिन अन्य मौसमों से भी इसके मामले सामने आए हैं और हिमालय क्षेत्र में इसका असर बढ़ रहा है। हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2023 में इस बीमारी के कारण 1000 से अधिक मामले दर्ज किए गए, जो पिछले साल दर्ज की गई संख्या से दोगुना हैं। जैसे-जैसे तापमान और आद्र्रता बढ़ती है, स्क्रब टाइफस के मामले भी बढ़ते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्क्रब टाइफस को गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता की एक कम मान्यता प्राप्त उपेक्षित बीमारी के रूप में सूचीबद्ध किया है। माइट्स नदी के किनारे, धान के खेत, असंवारित रसोई बाग और घासदार लॉन में निवास कर सकते हैं और ये स्क्रब टाइफस के प्रमुख स्थल हो सकते हैं। इसके साथ-साथ माइट्स चूहों, खरगोशों और गिलहरियों जैसे जानवरों के शरीर पर भी पाए जाते हैं। माइट्स अपना जीवन-चक्र चार चरणों में पूरा करता है : अंडा, लार्वा, निम्फ और वयस्क चरण। संक्रमित माइट्स के काटने से जीवाणु मनुष्यों के शरीर में प्रवेश करता है और अपनी विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए शरीर के दूसरे अंगों में फैलता है। माइट्स के काटने की जगह पर काले रंग का निशान बन जाता है जिसका मूल्यांकन चिकित्सक द्वारा किया जा सकता है। परंतु यह भी संभव है कि माइट्स के काटने के बाद काले रंग का निशान न बने। उस मामले में स्क्रब टाइफस की जांच मुश्किल हो जाती है। माइट्स के काटने के लगभग चौथे से पांचवें दिन बुखार आता है और काले रंग का निशान लगभग एक सप्ताह के बाद दिखाई देता है। इस बीमारी के लक्षण में बुखार, थकान, सिरदर्द, त्वचा पर लाल दाने, श्वास की समस्याएं, मांसपेशियों में सूजन आदि शामिल हैं। ये लक्षण और गंभीर हो सकते हैं। अगर समय रहते इसका सही उपचार न किया जाए तो मनुष्य की दर्दनाक मौत भी हो सकती है। स्क्रब टाइफस एक प्राचीन संक्रामक रोग है जिसका पहला मामला भारत में 1934 में हिमाचल प्रदेश में सामने आया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्क्रब टाइफस के कारण 20 फीसदी मृत्यु दर के साथ लगभग 36000 अमेरिकी, जापानी और ऑस्ट्रेलियाई सैनिक हताहत हुए थे। इसके अलावा भारत-पाकिस्तान 1965 युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों में स्क्रब टाइफस बुखार का एक प्रमुख कारण था।

भारत में हाल ही के अध्ययनों से पता चला है कि स्क्रब टाइफस तीव्र एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम के फैलने का एक महत्वपूर्ण कारण है जो ज्यादातर बच्चों को प्रभावित करता है। हिमाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है जो पहाड़ों से घिरा हुआ है और विशेष रूप से बरसात के मौसम में प्रभावित होता है। बारिश का मौसम अधिक जल की उपलब्धता का संकेत देता है, जो कृषि और पर्यावरण के लिए अच्छा होता है, लेकिन इसी बारिश के मौसम के दौरान स्क्रब टाइफस भी तीव्रता से फैलता है। स्क्रब टाइफस का प्रकोप पिछले 5 वर्षों से हिमाचल प्रदेश में तेजी से बढ़ रहा है और मृत्यु दर भी बढ़ी है। हिमाचल प्रदेश में स्क्रब टाइफस रोग का शीघ्र निदान भी एक समस्या है क्योंकि यहां इसका परीक्षण और उपचार करने वाले अस्पताल बहुत कम हैं। स्क्रब टाइफस का शीघ्र और सावधानीपूर्वक निदान जटिलताओं और मृत्यु दर को कम कर सकता है। हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य विभाग समय-समय पर चेतावनी भी जारी करता है कि अगर किसी व्यक्ति को दो दिन से ज्यादा बुखार है या अन्य कोई स्क्रब टाइफस के लक्षण हैं तो नजदीकी अस्पताल मे संपर्क करें। स्वास्थ्य विभाग के पास स्क्रब टाइफस के इलाज के लिए दवाएं उपलब्ध हैं, परंतु इलाज में देरी से अधिक गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती की आवश्यकता हो सकती है और जान को भी खतरा हो सकता है। स्क्रब टाइफस पर बहुत कम शोध कार्य हुआ है क्योंकि इसका जीवाणु अत्यधिक रोगजनक और विषैला है जिसके अलगाव और कोशिका संवर्धन के लिए उच्च स्तर की प्रयोगशालाओं की आवश्यकता होती है। साथ ही इस बीमारी के लिए अभी तक कोई प्रभावी टीका भी उपलब्ध नहीं है। स्वास्थ्य विभाग को भी जरूरत है कि इस बीमारी की रोकथाम और नियंत्रण के लिए उचित कदम उठाए। जिन जगहों से बीमारी के मामले ज्यादा आ रहे हैं, उन पर विशेष धयान देकर जागरूकता अभियान चलाना और माइट्स को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक का छिडक़ाव करना बीमारी को कुछ हद तक रोक सकता है।

हिमाचल प्रदेश में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनको इस बीमारी के बारे में जानकारी नहीं है। इसलिए स्क्रब टाइफस पर ज्यादा से ज्यादा जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। जैसे कि हम सबको पता है कि इलाज से बेहतर रोकथाम होती है, स्क्रब टाइफस की रोकथाम के लिए हम सबको मिलकर आगे आना है और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना है। खासकर घर व आसपास के वातावरण को साफ रखें। जब शारीरिक परहेज बनाए रखना मुश्किल हो, तो निवारक उपायों का पालन करना चाहिए। व्यक्तिगत सुरक्षा उपाय बीमारी को रोकने में सबसे प्रभावी हैं। सामान्य कृषि गतिविधियों के दौरान और जंगली या झाड़ीदार स्थानों पर जाने के दौरान पूरी बांह के कपड़े, पतलून/पैजामा और बंद जूते पहनें। खुली त्वचा पर कीट प्रतिकारक लगाएं।

डा. दीक्षित शर्मा

युवा वैज्ञानिक


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